
पुणे: पाली भाषा एक समृद्ध भाषा है, जिसे दीर्घ परंपरा और इतिहास प्राप्त है। भगवान बुद्ध ने भी अपना उपदेश आम जनता की भाषा के रूप में पाली में ही दिया था। यह भाषा भारत के साथ-साथ श्रीलंका और अन्य पश्चिमी देशों में भी फैली हुई है, और इस भाषा के विशेषज्ञ एवं विद्वान पूरी दुनिया में पाए जाते हैं। इससे पाली भाषा की समृद्ध परंपरा स्पष्ट होती है, ऐसा मत अखिल भारतीय पाली साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष और कोलकाता विश्वविद्यालय के पाली विभाग प्रमुख डॉ. उज्ज्वल कुमार ने व्यक्त किया।
पाली भाषा को अभिजात भाषा का दर्जा प्राप्त हुआ है। इस भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए पद्मपाणि फाउंडेशन द्वारा संचालित अभिजात पाली भाषा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान, पुणे तथा सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय के पाली और बौद्ध अध्ययन विभाग के सहयोग से एक दिवसीय अखिल भारतीय पाली साहित्य सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसका उद्घाटन जर्मनी के विश्वविख्यात भाषा विशेषज्ञ डॉ. जेम्स वू हार्टमन के हाथों संपन्न हुआ। इस अवसर पर अध्यक्षीय भाषण देते हुए डॉ. उज्ज्वल कुमार ने कहा कि पाली भाषा में विपुल साहित्य रचा गया है और इसका अनुवाद किया जाना आवश्यक है। यह एक विश्व धरोहर प्राप्त भाषा है, इसलिए इसके संरक्षण और प्रचार-प्रसार के लिए हमें प्रयासरत रहना चाहिए।
भवानी पेठ स्थित सावित्रीबाई फुले सभागृह में आयोजित इस कार्यक्रम में मंच पर डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान के महासंचालक सुनील वारे, सम्मेलन के मुख्य संयोजक पद्मपाणि फाउंडेशन के राहुल डंबाळे, स्वागताध्यक्ष डॉ. सिद्धार्थ धेंडे, प्रतिमा प्रकाशन के प्रमुख डॉ. दीपक चांदणे, पूर्व विधायक एवं पाली भाषा के विद्वान गौतम चाबुकस्वार, मुख्य निमंत्रक सुवर्णा डंबाळे, सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय के रक्षा और सामरिक विज्ञान विभाग प्रमुख डॉ. विजय खरे, लातूर स्थित राजर्षि शाहू कॉलेज के पाली विभाग प्रमुख डॉ. भीमराव पाटील सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। इस सम्मेलन में भारत सहित म्यांमार, श्रीलंका, वियतनाम, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, दक्षिण कोरिया और थाईलैंड जैसे आठ देशों के पाली भाषा के विद्वान और शोधकर्ता शामिल हुए।
इस अवसर पर जर्मनी के भाषाविद् डॉ. जेम्स वू हार्टमन ने कहा कि पाली भाषा अत्यंत प्राचीन है और इसमें समृद्ध कला और साहित्य की रचना हुई है। उन्होंने बताया कि उनकी संस्था ने कई महत्वपूर्ण ग्रंथों का पाली भाषा से जर्मन भाषा में अनुवाद कर प्रकाशित किया है।
डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान के महासंचालक सुनील वारे ने कहा कि पाली को अभिजात भाषा का दर्जा दिलाने के लिए अनेक प्रयास किए गए। विशेष रूप से उत्तर भारत और महाराष्ट्र के नागपुर और मुंबई विश्वविद्यालय के कई लोगों ने पत्राचार और न्यायालय का सहारा लेकर इस दिशा में कार्य किया। अभिजात भाषा का एक प्रमुख मानदंड यह है कि वह भाषा कम से कम 1,500 से 2,000 वर्ष पुरानी होनी चाहिए, जबकि पाली भाषा 3,000 वर्षों से अधिक पुरानी है। भारत में सम्राट अशोक के शिलालेख पाली भाषा और ब्राह्मी लिपि में लिखे गए हैं। इस सरकार द्वारा पाली भाषा को अभिजात भाषा का दर्जा दिए जाने से इसके प्रचार-प्रसार को निश्चित रूप से बल मिलेगा।
पूर्व विधायक और पाली भाषा के विद्वान गौतम चाबुकस्वार ने कहा कि पाली भाषा धम्म का आधार है और यह हमारी सामाजिक-राजनीतिक आंदोलनों की रीढ़ है। उन्होंने कहा कि मराठी सहित अन्य भाषाओं के साथ पाली को अभिजात भाषा का दर्जा मिल चुका है, फिर भी इसका उत्सव नहीं मनाया जा रहा है, जो खेदजनक है। उन्होंने बताया कि गुजराती, राजस्थानी, सिंधी, बंगाली और पंजाबी सहित कई भारतीय भाषाओं में पाली के तत्व पाए जाते हैं, जो इसकी प्राचीनता और समृद्धि को दर्शाते हैं।
कार्यक्रम का उद्घाटन ग्रंथपूजन और महात्मा ज्योतिबा फुले एवं सावित्रीबाई फुले की प्रतिमाओं पर पुष्पांजलि अर्पित कर किया गया। इसके बाद ‘चक्रवर्ती सम्राट अशोक के शिलालेखों में मानवतावादी संदेश’, ‘पाली भाषा – अवसर और चुनौतियाँ’ तथा ‘पाली भाषा के साहित्य में महत्व एवं उसका विकास’ जैसे विषयों पर विशेषज्ञों ने मार्गदर्शन किया।