
पुणे: आजादी के बाद भी देश में ऐसे कई भाई बहन है, जिन्हें अच्छा जीवन जीने क लिए जरूरी बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल पाती थी. सरकारी स्तर पर उन्हें दी जाने वाली सुविधाओं और सुख सुविधाओं को रेवडी नहीं कहा जा सकता है. ऐसे तीखे विचार झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष रवींद्रनाथ महतो ने व्यक्त किये.
एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी, पुणे और एमआईटी स्कूल ऑफ गवर्नमेंट, पुणे द्वारा आयोजित १४वीं भारतीय छात्र संसद के दूसरे दिन के प्रथम सत्र में रेवडी संस्कृतिः आर्थिक बोझ या आवश्यक सहयोग विषय पर संगोष्ठी आयोजित की गई. इस समय वे अध्यक्षीय भाषण में बोल रहे थे. इस मौके पर मेघालय के विधानसभा अध्यक्ष थॉमस संगमा, कांग्रेस मीडिया एवं प्रचार विभाग के अध्यक्ष पवन खेड़ा, एमआईटी डब्ल्यूपीयू के संस्थापक अध्यक्ष विश्वधर्मी प्रो.डॉ. विश्वनाथ दा. कराड, भारतीय छात्र संसद के संस्थापक और विश्वविद्यालय के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. राहुल वि.कराड तथा यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ. आर.एम.चिटणीस उपस्थित थे.
रवींद्रनाथ महतो ने कहा, हमारे यहाँ कॉरपोरेट को पीछे दौड़ने का नजारा दिखाई देता है. जब हमे गरीब और पिछडे समुदायों के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाएं लागू करते है जो उनका विरोध होता है. अब इस तस्वीर को बदलने की जरूरत है.
रेवडी शब्द का प्रयोग उन लोगों के लिए किया जाता है जिन लोगों के घरों में कभी भी थाली में रेवडी नहीं बनती. वास्तव में ये लोग दो वक्त के भोजन के लिए तथा पूरी जिंदगी संघर्ष करते है. उनके पास न तो स्वच्छ पेयजल है और न ही अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं. यहां रोजगार की कोई व्यवस्था नहीं है. मैं. झारखंड राज्य का प्रतिनिधित्व करता हूं. यहां की स्थिति, विशेषकर युवाओं के लिए भयावह है. यहां कुपोषण एक बड़ी समस्या है.
सामाजिक सुरक्षा योजनाएं रेवडी नहीं है. इन्हें देश के संयुक्त संसाधन कोष या राज्य की समेकित निधि से प्रदान किया जाता है. इस पर नागरिकों का पूरा अधिकार है. एक वर्ग ऐसा भी है जो सामाजिक सुरक्षा के बारे में नकारात्मक सोचता है. उद्योगपतियों को आगे पिछे किया जाता है. उस समय कोई रेवडी का विषय नहीं उठाते है. ऐसा कहा जा रहा है कि उद्योग रोजगार पैदा करेगा. हालाँकि कोई भी यह सवाल नहीं पूछता कि कितनी नौकरियों सृजित हुई. देश में कॉर्पोरेट लाभ वृध्दि दर २२ प्रतिशत है. इस प्रकार उनके द्वारा प्रदान की गई रोजगार वृद्धि दर १.५ प्रतिशत है. दूसरी ओर, यदि गरीब और मध्यम वर्ग को कुछ राहत प्रदान की जाती है, तो एक निश्चित वर्ग नाराजगी व्यक्त करता हैं. सामाजिक सुरक्षा योजनाएं कोई रेवडी नहीं है, वे स्मार्ट आर्थिक नीति है.
पवन खेडा ने कहा, सरकार द्वारा देशभर में लागू की गई सामाजिक सुरक्षा योजनाएं रेवडी संस्कृति नहीं हैं. यह विचार करना महत्वपूर्ण है कि इन योजनाओं की आवश्यकता क्यों है. सरकार ने अब तक विकास कायोर्र् के लिए कई किसानों की जमीने अधिग्रहित की हैं. बहुत से लोग पीछे छूट गये. सरकार ने उन लोगों के कल्याण के लिए कुछ योजनाएं लाई. इसलिए इसका विरोध नहीं होना चाहिए. इस समय विभिन्न छात्र प्रतिनिधियों ने अपने विचार रखें.
कार्यक्रम का संचालन प्रो.डॉ. गौतम बापट और आभार डॉ. दीपेन्द्र शर्मा ने माना.