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भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर: शक संवत का इतिहास और महत्व; नई शुरुआत का प्रतीक

admin January 1, 2025
भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर: शक संवत का इतिहास और महत्व; नई शुरुआत का प्रतीक
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हर साल की शुरुआत में घरों और कार्यालयों में पुराना कैलेंडर हटाकर नया लगाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत सरकार ने 1957 में देश के लिए एक नया कैलेंडर अपनाया था? इसे इंडियन नेशनल कैलेंडर या शक संवत कैलेंडर कहा जाता है। यह कैलेंडर भारतीय त्योहारों, तिथियों और परंपराओं को ध्यान में रखकर तैयार किया गया था।

 

ग्रेगोरियन कैलेंडर से असंतोष

आजादी के बाद, देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने महसूस किया कि ग्रेगोरियन कैलेंडर, जो विश्व में व्यापक रूप से उपयोग होता था, भारतीय संदर्भ में उपयुक्त नहीं था। इसे ध्यान में रखते हुए, 1952 में कैलेंडर सुधार समिति का गठन किया गया। इस समिति की अध्यक्षता जाने-माने भौतिक विज्ञानी और खगोलशास्त्री डॉ. मेघनाद साहा ने की।

 

समिति का काम और रिपोर्ट

समिति ने भारत में प्रचलित करीब 30 प्रकार के पंचांगों का अध्ययन किया। इन पंचांगों के आधार पर त्योहारों और कृषि-कार्य की तिथियां तय होती थीं, जो अक्सर क्षेत्रीय स्तर पर अलग-अलग होती थीं। इससे न केवल भ्रम की स्थिति पैदा होती थी, बल्कि सरकारी और निजी कार्यालयों में छुट्टियां तय करने में भी समस्या होती थी।

 

1955 में समिति ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी। इसमें शक संवत को राष्ट्रीय कैलेंडर के रूप में अपनाने की सिफारिश की गई। शक संवत 500 ईस्वी से भारतीय खगोलविदों द्वारा उपयोग किया जा रहा था। इसे वैज्ञानिक रूप से अद्यतन कर 21 मार्च 1956 (शक संवत 1878 का पहला दिन) से लागू करने का सुझाव दिया गया।

 

कैलेंडर की विशेषताएं

 

1. यह कैलेंडर चैत्र से फाल्गुन तक 12 महीनों का है।

2. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार इसका पहला दिन 22 मार्च है। लीप वर्ष में यह 21 मार्च होगा।

3. इसे भारत सरकार ने 22 मार्च 1957 से लागू किया।

 

वैज्ञानिक योगदान और वैश्विक प्रयास

डॉ. साहा की टीम को ब्रिटिश खगोलशास्त्रियों और अन्य विदेशी वैज्ञानिकों का भी सहयोग मिला। उन्होंने इस कैलेंडर को केवल भारत के लिए नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी उपयोगी बनाने की बात कही। उन्होंने इस विचार को संयुक्त राष्ट्र में भी प्रस्तुत किया, लेकिन इसे स्वीकार नहीं किया गया।

 

डॉ. मेघनाद साहा का योगदान

दुर्भाग्यवश, डॉ. साहा इस कैलेंडर को लागू होते देखने के लिए जीवित नहीं थे। 1956 में दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई।

आज, भारत सरकार के गजट, ऑल इंडिया रेडियो और अन्य सरकारी दस्तावेज़ों में इस कैलेंडर का उपयोग होता है। हालांकि, ग्रेगोरियन कैलेंडर के साथ इसका उपयोग सीमित है। यदि इसे खरीदने की इच्छा हो, तो यह 5-10 रुपये में सरकारी प्रेस से उपलब्ध है।

 

शक संवत का महत्व

इंडियन नेशनल कैलेंडर ने न केवल भारतीय परंपराओं को वैज्ञानिक आधार दिया, बल्कि त्योहारों और तिथियों में एकरूपता लाने का काम भी किया। यह भारत की सांस्कृतिक और वैज्ञानिक विरासत का प्रतीक है।

 

मगर आज के उठावली हिंदुत्ववादी, मोदी-शाह-भागवत के अनुयायी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बजरंग दल जैसे मठ्ठ संगठनों के कार्यकर्ताओं को इसकी कोई जानकारी नहीं है। कैलेंडर कमिटी की रिपोर्ट उन्होंने कभी पढ़ी ही नहीं।

क्योंकि ये सब व्हाट्सएप विश्वविद्यालय के स्नातक हैं।

इसलिए ये लोग केवल सतही और बेवकूफी भरी चर्चाएं करते हैं।

 

रघुनाथ माशेलकर, जिन्होंने अभी तक गाय के गोबर और मूत्र में औषधीय गुणों पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की है।

 

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